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Sunday, December 11, 2016

गांव की पुरातन देवीय शक्ति युक्त बोलती चट्टान

गजेंद्र सिंह शेखावत 

गांव की उर्वर मिटटी में प्रस्फुटित होकर काल के चक्र में समां गए अनेक पुरुषों का यश छुपा हुआ है । यहाँ की सुनहली रेत अनेक गाथाओं को दबाये हुए है । तो पत्थर भी समय की थपेड़ों को झेलते हुए पुरातन युग के निशब्द गवाह है ।
 ककराना गांव में पत्थर के रूप में एक ऐसी चट्टान आज भी देखने वालों को आश्चर्यचकित करती है । देवनारायण बाबा के मंदिर से पूर्व की और पहाड़ी की ओट में नुकीली चूंप पर बिना सहारे के खड़ी एक असाधारण चटान बरबस ही अपनी और ध्यानाकर्षण कर लेती है । प्रथमदृष्ट्या यह द्रस्तिगोचर होताहै की यह चटान हलके बलप्रयोग से आसानी से गिराई जा सकती है । परन्तु यह मात्र भरम ही है । सेकड़ो सालों में घनी बारिश ,अंधड़ ,गर्मी की ताप व् भूकम्प के अनेक झटके आये ,पर इस चट्टान को नहीं डिगा सके । बताते है है कई वर्ष पूर्व एक समय में यह चटान देवीय अंशरूप में जानी जाती थी । उस समय चोरों का आतंक हर एक गांव में हुआ करता था । गांव में जब भी चोर प्रवेश करते यह चटान ग्रामवासियों को विशेष संकेतों से आगाह कर देती थी परिणामस्वरूप गांव में जाग होती थी और चोरों को उलटे पैर भागना पड़ता था ।
 इस प्रकार यह देवांश चट्टान गांव की सुरक्षाकर्मी के रूप में जानी जाती थी । किवंदती है की जब चोरों की दाल इस गाँव में नहीं गली तो उन्होंने इस चट्टान को दूषित करके इसकी देवीय शक्ति को छिन्न भिन्न करने का उपाय सोचा । उन्होने किसी तांत्रिक की सलाह पर इसके निचे गाय के रक्त से सनी पुंछ रख दी । देवरूपी गौ माता के रक्त से इस चटटान की देवीय शक्ति विदूषित हो गयी और यह हमेशा के लिय शांत हो गयी । आज यह चट्टान बोलकर आगाह तो नहीं करती पर कच्चे पलुए पत्थर युक्त पहाड़ी की ढलान पर बिना अवलंब के स्तम्भ के रूप में इसका दृढतापूर्वक लम्बायमान खड़ा रहना आस्चर्यचकित अवश्य करता है |

Tuesday, October 20, 2015

दशानन

गजेन्द्र सिंह शेखावत 

भीमकाय शस्त्रों से सुसज्जित बारूद के शोर में ।
दशानन का दहन होगा, है हल्ला चहुँ और में ।
भीड़ का उत्साह कोलाहल डब- डब छलक रहा था
सतरंगी रोशनी में खड़ा दीप्त, भयानक दहक रहा था ।
रावण की दशों भुजाये शस्त्रोजित और अट्ठास करता मुंड
शायद उसकी मनो दशा से, अनभिज्ञ था  उपस्थित झुण्ड ।
मानो कह रहा था असुर मैं कल भी था आज भी हू
हर रोज हूँ, नित्य हूँ सर्वज्ञ व् सर्वव्यापक हूँ ।
मरते नहीं दैत्य कभी मूर्खों, कुछ यूँ गरजा तब लंकेश
और भीड में से मेरे असंख्य, पहले पहचानों तुम वेश ।
राम की मर्यादा ,शील सीता का, किस -किस में है कहो
अगर नहीं उत्तर है तो फिर , पुतले यूँ ही जलाते रहो ।।





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